Sai Baba katha - Sai Shradha Saboori

Shradha Saburi

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Monday, May 21, 2018

Sai Baba katha

जानिए, 60 सालों तक शिरडी में गेहूं क्यों पीसते रहे साईं बाबा

साईं बाबा अपने भक्तों की जीवनशक्ति हैं. उनका नाम लेकर ही भक्त अपने जीवन की हर उलझन सुलझा लेते हैं. कुछ लोग साईं को भगवान कहते हैं तो कुछ अवतार. वहीं कुछ भक्त साईं को फरिश्ता भी मानते हैं. आज हम साईं बाबा के अनोखे चरित्र से जुड़ी कुछ ऐसी दिव्य कथाएं और जानकारियां लाए हैं जो आपकी जिंदगी बदलने की शक्ति रखती हैं.
साईं बाबा के ईश्वरीय गुणों की महिमा-
साईं सभी कामों को निर्विघ्न संपन्न कराने वाले गणपति के ही स्वरूप हैं.
साईं बाबा के भीतर भगवती सरस्वती का भी अंश माना गया है.
साईं संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के अधिष्ठाता देवों यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी अभिन्न अंग हैं.
साईं ही स्वयं गुरु बनकर भवसागर से पार उतारते हैं.
साईं बाबा से जुड़ी एक कहानी है- गेहूं पीसने की कहानी. तो आइए सबसे पहले इस कहानी के बारे में जानते हैं....
गेहूं पीसने की कथा
एक दिन सुबह-सुबह साईं बाबा हाथ से पीसने वाली चक्की से गेहूं पीसने लगे. ये देखकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए लेकिन साईं बाबा से इसका कारण पूछने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. सब सोच रहे थे कि साईं बाबा के ना कोई घर है ना परिवार और इनका गुजारा भी भिक्षा से हो जाता है. फिर साईं गेहूं क्यों पीस रहे हैं. साईं की ये कौन सी लीला है. तभी भीड़ से चार नि़डर महिलाएं निकलीं और बाबा को चक्की से हटाकर खुद गेहूं पीसने लगीं. जब सारा गेहूं पिस गया तो चारों महिलाओं ने आटे के चार हिस्से किए और लेकर जाने लगीं. तभी साईं ने उन्हें रोका और कहा कि ये आटा ले जाकर गांव की मेड़ पर बिखेर आओ. फिर पूछने पर पता चला कि गांव में हैजा नाम की बीमारी का प्रकोप फैल चुका था और आटा पीसकर बिखेरना उसी जानलेवा बीमारी का उपचार था. साईं की लीला ऐसी कि उसी आटे ने गांव से हैजा का संक्रामकता खत्म कर दी और गांव के लोग सुखी हो गए.
साईं की हर लीला में कोई ना कोई संदेश छुपा है. साईं बाबा ने बड़े-बड़े रोग-बीमारियों और कुरीतियों का अंत किया था. केवल अपनी बातों के जरिए इंसान की दुर्भावनाओं को भी नष्ट कर देते थे. उनका जीवन दर्शन किसी दैवीय लीला से कम नहीं है. हैजा नाम की महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए गेहूं पीसने की कथा तो आप सुन ही चुके हैं लेकिन इस कथा का अभिप्राय क्या है?
गेहूं पीसने की कथा का अर्थ-
साईं बाबा 60 साल तक शिरडी में रहे और गेहूं पीसने का काम लगभग रोज किया.
यहां गेहूं प्रतीक है भक्तों के पाप, दुर्भाग्य, मानसिक और शारीरिक कष्टों का.
चक्की के दोनों पाटों में ऊपर भक्ति और नीचे कर्म था.
चक्की की मुठिया जिसे पकड़कर गेहूं पीसा जाता था, वो ज्ञान का प्रतीक थी.
यानि भक्ति और कर्म के बीच ज्ञान के जरिए ही इंसान की सभी बुराइयों का अंत करते थे साईं.
साईं बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक इंसान की प्रवृत्तियां, आसक्ति, घृणा और अहंकार नष्ट नहीं हो जाते तब तक ज्ञान और आत्म अनुभूति संभव नहीं.
मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और ब्राह्मण, उपासना के इन सात तत्वों के बावजूद सदगुरु ही सबसे श्रेष्ठ माने गए हैं.
क्यों होती है गुरु की आवश्यकता?
जीवन का उत्तम लाभ केवल गुरु के उपदेश का पालन करने से ही संभव है.
महान अवतारी होते हुए भी प्रभु राम को गुरु वशिष्ठ और श्रीकृष्ण को गुरु संदीपनि की शरण में जाना पड़ा था.
गुरु कृपा पाने के लिए केवल सच्ची श्रद्धा और धैर्य का होना जरूरी है.
जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते बहुत हैं लेकिन सभी रास्ते कठिनाइयों और मुसीबतों से भरे हैं.
ऐसे में गुरु ही इंसान को मुसीबतों से बचाते हुए मंजिल तक ले जाने में सक्षम हैं.

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages